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साल 2008 में यूपीए सरकार के कार्यकाल दौरान बांटे गए 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस के मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट द्वारा पूर्व टेलीकॉम मंत्री ए राजा और उनकी पार्टी डीएमके की सांसद कनीमोझी समेत 15 आरोपियों को बरी किए जाने के ठीक एक दिन बाद सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जीएस सिंघवी ने कहा है कि ट्रायल कोर्ट के फैसले के मतलब यह नहीं है कि 2जी घोटाले जैसा कोई केस है ही नहीं, बल्कि इसका मतलब यह है कि अभियोजन पक्ष आरोपों को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं पेश कर सका है|
गौरतलब है कि फरवरी 2012 में जस्टिस जीएस सिंघवी ने ही इस मामले में अनियमितता के चलते टेलीकॉम लाइसेंस और स्पेक्ट्रम के आवंटन को रद्द करने का आदेश दिया था| कृपया ट्रायल कोर्ट के पूरे फैसले को ध्यान से पढ़ें, कोर्ट ने कहा है कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने के संबंध में आवश्यक प्रमाण कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने में असफल रहा है, बस इतना ही, जस्टिस सिंघवी ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से खास बातचीत में शुक्रवार को यह बात कही|
उन्होंने कहा कि, क्रिमिनल लॉ में दो चीजें प्रमुख होती हैं, एक कोई केस नहीं है और दूसरा कोई सबूत नहीं है| इस केस में, जैसा कि प्रेस रिपोर्ट से मुझे पता चला है, कोई सबूत नहीं होने का मामला है| अगर किसी ने अपराध किया है, लेकिन उसका कोई सबूत अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है, जो आरोपी को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता है|
साल 2012 में तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा के कार्यकाल के दौरान 2जी लाइसेंस रद्द किए जाने का फैसला जस्टिस सिंघवी और जस्टिस एके गांगुली की बेंच ने किया था| इस दौरान उन्होंने अपने फैसले में कहा था, संचार मंत्री के नेतृत्व में डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम के अधिकारियों ने सितंबर 2007 और मार्च 2008 के बीच 2जी आवंटन की जिस प्रक्रिया को अपनाया है वह पूरी तरह से मनमानी, लापरवाही और जनहित के विपरीत इसके अलावा यह समानता के सिद्धांत का भी उल्लंघन करता है|
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