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सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को उस याचिका पर फैसला सुनाने की उम्मीद है जिसमें बलात्कार कानून में अपवाद के एक प्रावधान की वैधता को चुनौती दी गई है| इस अपवाद के जरिये कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति 15 साल से अधिक उम्र की अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाता है तो यह बलात्कार नहीं है| आईपीसी की धारा 375 बलात्कार के अपराध को परिभाषित करती है| इस धारा के अपवाद में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी 15 साल से अधिक उम्र की पत्नी से यौन संबंध बनाता है तो यह बलात्कार नहीं है| हालांकि, सहमति की आयु 18 साल है|
न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने छह सितंबर को याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था| पीठ ने केंद्र से सवाल किया था कि कैसे संसद कानून में कोई अपवाद बना सकती है जिसमें घोषणा की गई हो कि किसी व्यक्ति द्वारा 15 साल से अधिक और 18 साल से कम उम्र की अपनी पत्नी के साथ बनाया गया यौन संबंध बलात्कार नहीं है, जबकि रजामंदी की आयु 18 साल है| शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह वैवाहिक बलात्कार के पहलू में नहीं जाना चाहती है, लेकिन जब सभी उद्देश्यों के लिये सहमति की आयु 18 साल है तो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में इस तरह का अपवाद क्यों बनाया गया|
इस सवाल का जवाब देते हुए केंद्र के वकील ने कहा था कि अगर आईपीसी के तहत यह अपवाद समाप्त हो जाता है तो यह वैवाहिक बलात्कार के क्षेत्र को खोल देगा, जिसका भारत में अस्तित्व नहीं है| उन्होंने विवाह के उद्देश्य के लिये मुस्लिमों के बीच यौवनारंभ की उम्र की अवधारणा का उल्लेख करते हुए कहा था कि संसद ने निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले इन पहलुओं पर विचार किया है|
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि सिर्फ इसलिये कि इस अवैध प्रथा को कानूनी माना गया है और यह वर्षों से चल रही है इसलिये बाल विवाह इस तरह से नहीं चल सकता है| याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का इस हद तक उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग की है कि यह 15 और 18 साल के बीच की लड़की के साथ सिर्फ इस आधार पर यौन संबंध की अनुमति देता है कि वह विवाहित है|
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