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भारत में बच्चों को घर से बाहर खेलने (आउटडोर गेम्स) के मौके उनके माता-पिता के बचपन की तुलना में, कम मिलते हैं| दस देशों में किए गए सर्वे में पाया गया कि दुनियाभर में लगभग आधे बच्चे सिर्फ एक घंटे या इससे भी कम समय तक अपने घर के बाहर खेलते हैं| शोध में 12,000 ऐसे अभिभावकों को शामिल किया गया जिनके कम से कम एक बच्चे की उम्र पांच वर्ष से 12 वर्ष के भीतर है| आउटडोर गेम्स के कम होते वक्त पर दिल्ली के एक एनजीओ ने भारत भर के शिक्षकों से अनुरोध किया कि वे वैश्विक अभियान ग्लोबल आउटडोर क्लासरूम डे पर इस वर्ष 12 अक्तूबर को कम से कम एक पाठ कक्षा से बाहर लें|
एक्शन फॉर चिल्ड्रन्स एन्वायरनमेंट (एसीई) की सीईओ सुदेशना चटर्जी ने कहा, हम शिक्षकों, अभिभावकों और बच्चों की परवाह करने वाले सभी लोगों से 12 अक्तूबर 2017 को इस अभियान से जुड़ने का अनुरोध करते हैं| यह सर्वे मार्केट रिसर्च फर्म एडलमान इंटेलिजेंस ने फरवरी से मार्च 2016 के बीच 10 देशों- भारत, अमेरिका, ब्राजील, ब्रिटेन, तुर्की, पुर्तगाल, दक्षिण अफ्रीका, वियतनाम, चीन और इंडोनेशिया में किया|
शोधकर्ताओं ने पाया कि भारत में 56 फीसदी अभिभावकों का ऐसा मानना है कि उनके बच्चों को बाहर खेलने के मौके कम मिलते हैं, वह इसकी तुलना खुद के बचपन से करते हैं|
गुरुग्राम में कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. श्वेता शर्मा ने कहा, बच्चों का शारीरिक ऊर्जा स्तर काफी अधिक होता है और इसलिए उनके लिए आउटडोर खेल और गतिविधियां बहुत महत्वपूर्ण होती हैं| इससे वे प्रायोगिक ढंग से सीखते हैं और उनके मस्तिष्क का अधिक इस्तेमाल भी होता है| उन्होंने कहा, जब वे घर में ही बंद रहते हैं तो उनकी रोग-प्रतिरोधक प्रणाली का विकास कम होता है| बाल विकास के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों को अभिभावकों और स्कूलों के साथ मिलकर बच्चों को अधिकाधिक आउटडोर गतिविधियां मुहैया करवाने के तरीके खोजने चाहिए|
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